जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम-2019, को भारतीय संसद से पारित हुए एक वर्ष हो गए हैं ; परन्तु चुनौतियाँ अभी भी विद्यमान हैं।
रवि मिश्रा
1947 से अगस्त 2019 के दौरान जम्मू-कश्मीर विशेष राज्य के रूप में भारतीय संघ से भिन्न पहचान स्थापित करता था। यह विशेषाधिकार उस राज्य को संविधान के अनुच्छेद 370 के द्वारा प्रदान किया गया था, जिसे 5 अगस्त 2019 को निरसित किया गया। इससे पूर्व भी इसको समाप्त करने के प्रयास किये गये। इस विशेष राज्य के मुखर विरोधी भारतीय जनसंघ के संस्थापक श्यामा प्रसाद मुकर्जी थे जिनका प्रसिद्ध कथन, "एक देश में दो विधान, दो प्रधान, आैर दो निशान नहीं चलेंगे" है। जम्मू-कश्मीर को विशेषाधिकार के रूप में अनुच्छेद 370 जो कि भारतीय संविधान में एक 'अस्थायी प्रावधान' के तौर पर 17 अक्टूबर, 1949, को शामिल किया गया था। इस प्रावधान का अर्थ था कि जम्मू-कश्मीर स्वयं का सविंधान निर्माण कर सके और राज्य में भारतीय संसद की विधायी शक्तियों को प्रतिबंधित कर सके। 1954, में राष्ट्रपति के एक आदेश के द्वारा अनुच्छेद 35A जो कि अनुच्छेद 370 से उपजा, को लागू किया गया था। जिससे जम्मू-कश्मीर विधायिका को राज्य के स्थायी निवासियों के विशेषाधिकारों को परिभाषित करने का अधिकार मिलता था। भारतीय संविधान में अनुच्छेद 370 को जम्मू-कश्मीर को स्वायत्तता प्रदान करने के लिए जोड़ा गया था, परन्तु यह इस उद्देश्य में विफल रहा। 5 अगस्त, 2019, को भारत सरकार एक ऐतिहासिक निर्णय लेते हुए जम्मू-कश्मीर राज्य से संविधान का अनुच्छेद 370 निरसित कर,और राज्य का विभाजन दो केंद्र-शासित क्षेत्रों जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के रूप में प्रस्तावित किया। इस प्रकार से ये भारत का एकीकरण किया गया।
ऐतिहासिक दृष्टिकोण से जम्मू-कश्मीर एक स्वतंत्र रियासत था। परन्तु भारत विभाजन और स्वतंत्रता के उपरांत जम्मू-कश्मीर के महाराजा हरिसिंह ने राज्य को भारत में विलय करने का निर्णय लिया। यह निर्णय उन्होंने पाकिस्तान द्वारा समर्थित कबायलियों के जम्मू-कश्मीर पर आक्रमण के बाद लिया। बाह्य एवं आन्तरिक परिस्थितियों के कारण अनुच्छेद 370 को भारतीय संविधान में मजबूरन स्थान देना पड़ा। फिर भी स्थितियों में परिवर्तन न हुआ। इसी के कारण कश्मीर लंबे समय से उग्रवाद और हिंसा से पीड़ित रहा। इसने कश्मीर और अन्य राज्यों के बीच खाई बढ़ाने का कार्य किया। अनुच्छेद 370 के कारण पाकिस्तान और चीन जैसे पड़ोसियों से भारत की सुरक्षा संबंधी चुनौतियाँ और जटिल हो रहीं थीं।
जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम-2019, को भारतीय संसद से पारित हुए एक वर्ष हो गए हैं ; परन्तु चुनौतियाँ अभी भी विद्यमान हैं।जिस प्रकार के परिवर्तन की अपेक्षा की गई थी चाहे वह विकास, बुनियादी सुविधा, भ्रष्टाचार, रोजगार के अवसर, जीवन की गुणवत्ता में सुधार आदि के निराकरण अभी भी बाकी हैं। पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित आतकंवाद,उग्रवाद,छद्म युद्ध व राज्य में इन्टरनेट पर प्रतिबंध जैसी अन्य चुनौतियाँ हैं। राज्य के विशेष प्रावधान को निरसित करने के बाद से वहां पर लगे कर्फ्यू से आम जनजीवन और अधिक प्रभावित हुआ है। ऐसी परिस्थिति में इन्टरनेट लोगों व छात्रों के लिए शिक्षण संस्थानों के बन्द होने से वरदान के रूप में साबित हो सकता था, परन्तु इसको भी सुरक्षा चुनौतियों का हवाला देकर स्थगित कर दिया गया। प्रेस को भी इस कारण से काम करने में अधिक समस्या हो रही है। राज्य के लोग अनभिज्ञ हैं, कि राज्य के अन्दर क्या घटित हो रहा है। कोरोना वायरस जैसी महामारी आने से सामान्य जनजीवन की समस्याएं और जटिल हो गईं। आर्थिक मोर्चे पर भी चुनौतियाँ विद्यमान हैं, पर्यटन का ठप्प होना व बागवानी में सेब की खेती बुरी तरह से प्रभावित होना, जिसका राज्य के सकल घरेलू उत्पाद में 8 प्रतिशत का योगदान है। सीमावर्ती राज्य होने के कारण बाह्य कारकों से निपटना भी एक चुनौती है।
राज्य में अनुच्छेद 370 के समापन के पश्चात निश्चित तौर पर इसके अन्दर प्रबल संभावनाएं होंगी। राज्य के चहुमुखी विकास को सुनिश्चित करने हेतु विभिन्न दिशाओं में न केवल संभावनाएं तलाशनी होंगी अपितु फौरी तौर पर अमल में भी लाना होगा। इसके लिए सरकार द्वारा अग्रलिखित प्रयास किये जा सकते हैं जैसे-
भारतीय संघ के अन्य राज्यों की भाँति यहां पर भी निवेश और व्यापार के लिए निवेशकों को आकर्षित और प्रोत्साहित किया जाए, राज्य की आधारिक संरचना को इस प्रकार सुदृढ़ किया जाए जो निवेश और पर्यटन को सुचारू बना सके, शिक्षा व्यवस्था में सुधार किया जाए एवं शिक्षा नीति के सफल क्रियान्वयन द्वारा शिक्षा की गुणवत्ता को बढ़ाया जाए, महिलाओं की शिक्षा,रोजगार एवं अन्य अधिकारों को सुगम बनाने का प्रयास किया जाए। बाहरी निवेश से राज्य का आर्थिक पक्ष मजबूत होगा,रोजगार के अवसर व क्षेत्र के विकास की प्रबल संभावनाएं हैं। पर्यटन के दृष्टिकोण से कश्मीर और लद्दाख के क्षेत्र पर्यटकों के लिए आकर्षण के केन्द्र हैं। आतंकवाद और उग्रवाद से प्रभावित क्षेत्र में भारत सरकार के पास शांति और विकास सुनिश्चित करने का अवसर है।
जम्मू-कश्मीर के समस्याओं को गहराई से समझने और शांतिपूर्ण ढंग से समाधान के लिए एक व्यापक दृष्टिकोण की आवश्यकता है। राज्य के निवासियों को भय के वातावरण से निकाल कर, उन्हें ये विश्वास दिलाने की जरूरत है कि, जो भी निर्णय लिया गया है, वह उनके भविष्य को बेहतर बनाने में सहयोग करेगा। कानून-व्यवस्था और प्रशासन के स्तर पर अधिक सुधार की आवश्यकता है। कश्मीर में वैधता के संकट को हल करने के लिए अहिंसा और शांति का गांधीवादी मार्ग अपनाया जाना चाहिए। राज्य की समस्या समाधान के लिए अटल बिहारी वाजपेयी के कश्मीरियत, इंसानियत व जम्हूरियत के प्रारूप को सुलह का आधारशिला बनाना चाहिए।
(Ravi Mishra is an Intern with Academics4Nation. He is a research scholar at BBAU, Lucknow)
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