कोरोना से निपटने के लिए भारत सरकार ने वो सभी कदम उठाये है जो एक सक्रिय लोक कल्याणकारी सरकार को सही समय पर करना चाहिए.
लाल बहादुर पुष्कर
मुसीबत कभी बता कर नहीं आती और अनपेक्षित रूप से कोई मुसीबत आये तो उससे पार पाने में समय जरूर लगता है। कोरोना वायरस ने जिस तरीके से पूरे विश्व को अपनी गिरफ्त में ले रखा है और विश्व की सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था को पंगु बना दिया है। इस परिस्थिति में किसी भी सरकार के सामने एकमात्र चुनौती यह है कि वह कैसे अपने नागरिकों को इस ख़तरनाक महामारी से बचाये और उन्हें एक भयमुक्त वातावरण मुहैया प्रदान करे। इटली और अमेरिका जैसे विकसित देश में जहाँ उच्च स्तर के हॉस्पिटल और स्वस्थ जीवन शैली के मानदंड मौजूद है बावजूद इसके वहां पर सरकार के द्वारा सही समय पर चरणबद्ध रूप से नागरिकों और विदेशियों की आवाजाही पर रोक न लगाना तबाही का कारण बन गया। चीन के वुहान प्रांत से ये वायरस पूरे विश्व में फैला है इसीलिए अमेरिकी मीडिया इसे “चीनी वायरस” भी संबोधित कर रही है.
ध्यातव्य है कि वुहान शहर से कई चीनी लोग इटली में नव वर्ष मनाने गए थे। तब एहतियात के तौर पर इटली के लोगों ने कुछ दूरी बनानी शुरु की थी लेकिन चीनी लोगों ने इसे भेदभाव के तौर पे देखा और बाकायदा उन लोगों ने विरोध जताया और चौराहों पर पोस्टर लगाकर लिखा - “I am not a virus, I am a human, free me from prejudice.” and “Please hug me I am not a virus.” और इटलीवासियों ने इसे सामान्य घटना मानी लेकिन दो महीने के भीतर देखते ही देखते कई लोग इस वायरस के चपेट में आ गए और अपने जान से हाथ धो बैठे।
अभी तक इटली समेत पूरे विश्व में हजारों लोग मौत के घाट उतर चुके है और ये सिलसिला अभी भी जारी है।
इन्हीं सन्दर्भों में भारत सरकार के द्वारा लिए गए अभी तक के सभी त्वरित निर्णय उच्च मानदंडों को प्रदर्शित करती है। साथ ही जनवरी के मध्य से ही हवाई अड्डों पर शुरुवाती स्क्रीनिंग, साथ ही सामाजिक समारोहों पर रोक और रेस्तरां, थिएटर और जिम सहित सार्वजनिक स्थानों को लोगों के पहुँच से दूर रखा गया है। इस तरह की द्रुत प्रतिक्रिया ने यह सुनिश्चित किया कि नागरिकों के बीच कोई घबराहट न हो और संभव हद तक असुविधा से बचाव किया जाये। भारत सरकार ने चीन, जापान, ईरान और इटली सहित 1400 से अधिक नागरिकों को उच्च जोखिम वाले देशों से निकाल लिया है। यह पहली बार नहीं है कि भारत ने अपने नागरिकों और अन्य देशों के ऐसे संकटों के दौरान उनकी सुरक्षा और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाया है।
भारत की सीमा दक्षिण एशिया के कई देशों से साझा होती है। इसी के मद्देनजर एक ज़िम्मेदार राष्ट्र होने के नाते भारत सरकार ने इस महामारी से लड़ने में एक दूसरे का समर्थन जुटाने में नेतृत्व दिखाया और सार्क देशों के साथ विश्वसनीय सूचना को साझा किया।
इसे सटीक और सतर्कता के साथ रोकने के लिए 21 दिनों का सम्पूर्ण भारत लॉकडाउन किया गया और जिसमें इमरजेंसी सेवाओं को छोड़कर सभी आर्थिक गतिविधियों को अल्पकाल के लिए रोक दिया गया, जिससे लोग कम-से-कम एक दूसरे के संपर्क में न आये और बाहर निकले भी तो सामाजिक-दूरी (social distancing) का पालन करें।
लॉकडाउन से सबसे बड़ी चुनौती जो देश के सामने थी वह यह थी किस प्रकार से उन लोगों पर इसका असर कम पड़े जो रोज कमाते है और रोज खाते है।
इसके लिए सरकर ने आश्वासन दिया कि “कोरोना के चलते लॉकडाउन से कोई भूखा नहीं रहेगा। सरकार इसका पूरा इंतजाम करेगी। सरकार गरीब लोगों के खाते में सीधे पैसे डालेगी।” इसीलिए सरकार ने कमजोर आर्थिक वर्ग के लोगों के लिए 1.70 लाख करोड़ रुपये के पैकेज का एलान किया है। इसी पैकेज से सभी वर्ग की सरकार मदद करेगी। जिसमें डॉक्टर और नर्स सहित स्वास्थ्यकर्मियों के लिए मेडिकल इंश्योरेंस की सुविधा दी जा रही है। ये लोग कोरोना से लड़ाई में अपनी जान जोखिम में डालकर दिन-रात काम कर रहे हैं। इन लोगों को 50 लाख रुपये के बीमा की सुविधा मिलेगी। इससे करीब 20 लाख लोगों को फायदा होगा। कोई भी गरीब भूखा न रहे इसके लिए प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत 80 करोड़ गरीब लोगों को राहत दी जाने लगी है। इसके लिए 5 किलो गेहूं और 5 किलो चावल दिया जाएगा। यह राशन तीन महीने तक दिया जाएगा। एक परिवार को एक किलोग्राम भी दाल भी दिया जाएगा। सरकार किसानों को किसान निधि के तहत उनके खाते में सीधे रकम ट्रान्सफर करेगी जिसका लाभ 8.70 करोड़ किसानों को मिलेगा।
साथ ही ग्रामीण क्षेत्र में मनरेगा के तहत काम करने वाले 5 करोड़ परिवारों को राहत देते हुए प्रतिदिन की मजदूरी 182 से रूपये से बढाकर 202 रूपये कर दिया गया। इसके अलावा समाज के 3 करोड़ ऐसे लोग जिसमें 60 साल के ज्यादा उम्र के लोगों, विधवाओं और दिव्यांग लोगों को अतिरिक्त 1000 रुपये की सहायता दी जा रही है। प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के तहत महिला स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी) के लिए दीनदयाल योजना के तहत 10 लाख रुपये का कौलेटरल फ्री लोन दिया जाता था। इसे बढ़ाकर 20 लाख किया जा रहा है। इसका फायदा 7 करोड़ परिवारों को मिलेगा। ऐसे एसएचजी की संख्या देश में 63 लाख है। भारत सरकार के पास कंस्ट्रक्शन क्षेत्र के कामगारों के लिए पहले से ही वेल्फेयर फंड है जिसमें पर्याप्त राशि जमा है। इसमें राज्य सरकारों को इस फंड के पैसे से कंस्ट्र्क्शन क्षेत्र के कर्मचारियों की मदद करने के लिए कहा जाएगा। इसका लाभ 3 करोड़ कामगारों को मिलेगा।
चुनौतियाँ गंभीर है लेकिन इस आर्थिक पैकेज के माध्यम से भारत सरकार ने लगभग 90 करोड़ लोगों को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तरीके से इसके आर्थिक दुष्प्रभाव से बचाने के लिए सफल कोशिश की है।
कोरोना वायरस के विरुद्ध इस युद्ध में भारत सरकार द्वारा इस आर्थिक रणनीति में समाज के हर वर्ग को समाहित करने का प्रयास किया गया है जिससे आर्थिक मोर्चे पर कोई चूक न हो। साथ ही सरकार ने वो सभी कदम उठाये है जो एक सक्रिय लोककल्याणकारी सरकार को सही समय पर करना चाहिए।
(जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली में शोधछात्र रह चुके लेखक वर्तमान में आईआर एस अधिकारी हैं)
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