कोरोना संकट के प्रभाव से निकलने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने 20 लाख करोड़ के आर्थिक राहत पैकेज की घोषणा की है और भारतीयों के सामने आत्मनिर्भर अर्थव्यवस्था की संकल्पना रखी है। भारत इन नवीन चुनौतियों का कैसे सामना करेगा और नवीन अवसरों को कितना भुना पाएगा, यह सब निर्भर करेगा भारत के राजनैतिक नेतृत्व और जनमानस पर।
आनंद मधुकर
पिछले साल दिसंबर में चीन के वुहान शहर से शुरू हुआ कोरोना वायरस का संक्रमण आज विश्व के 200 देशों में फैल चुका है। अभी तक इस वायरस के कारण दुनिया में 3 लाख से अधिक मौतें हो चुकी हैं। इस महामारी से पूरी दुनिया में 47 लाख लोग संक्रमित हैं। इसका सर्वाधिक प्रभाव अमेरिका और यूरोपीय देशों में है। अकेले अमेरिका में 88 हजार से अधिक नागरिकों की मौतें हुईं हैं और 15 लाख लोग संक्रमित हैं। वहीं यूरोप के चार प्रमुख देश ब्रिटेन, इटली, फ्रांस और स्पेन भी बुरे तरीके से कोरोना संक्रमण से प्रभावित हैं और यहां कुल 1.20 लाख से अधिक नागरिक मौतें हुई हैं। कोरोना महामारी के कारण आज पूरा विश्व 1929 की महान आर्थिक मंदी के बाद के सबसे बड़े आर्थिक संकट का सामना करने पर विवश है। चिंता की बात यह है कि कुछ दावों के बावजूद अभी तक कोरोना की कोई प्रामाणिक वैक्सीन नहीं मिली है। अभी कोरोना मरीजों के इलाज के लिए मलेरिया रोधी दवा हाइड्रोक्सी क्लोरोक्विन का इस्तेमाल हो रहा है। कई देशों में कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए लागू किए गए लॉकडॉउन का लोग विरोध भी कर रहे हैं।
इसी बीच, सामरिक विशेषज्ञों में यह चर्चा चल रही है कि कोरोनावायरस के क्या वैश्विक भू-सामरिक परिणाम होंगे। मेरे विचार में, कोरोनो संकट का पहला वैश्विक भूराजनीतिक परिणाम पश्चिमी देशों और चीन के बीच संबंधों में तनाव के रूप में सामने आया है। उल्लेखनीय है कि कोरोना की शुरुआत चीन से ही हुई और उसकी गैर-पारदर्शी गतिविधियों को लेकर शंकाएं खड़ी हुईं। इससे चीन पर आरोप लगा कि उसने कारोना से संबंधित महत्वपूर्ण सूचनाओं को जान बूझकर वैश्विक समुदाय के साथ साझा नहीं किया और चीन के बाहर उसके प्रसार को रोकने में कोई रुचि नहीं दिखलाई। चीन ने अंतर्राष्ट्रीय वैज्ञानिकों को वुहान में जाने की अनुमति नहीं दी, जहां स्थित वुहान इंस्टिट्यूट ऑफ वायरोलॉजी (डब्ल्यूआईवी) में चीन कोरोना जैसे अनेक वायरस विकसित करता रहा है। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने आरोप लगाया कि कोरोनावायरस चीन स्थित डब्ल्यूआईवी से ही पूरी दुनिया में फैला है। अमेरिका के अतिरिक्त जर्मनी, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया सहित कई अन्य देशों ने भी कोरोना संकट के लिए चीन को जिम्मेदार ठहराया है और इस संदर्भ में एक स्वतंत्र अंतर्राष्ट्रीय जांच की मांग की है । ध्यातव्य है कि 21वीं सदी का पहला वायरस सार्स भी चीन की धरती से ही विश्व में फैला था।
कोरोनो संकट का दूसरा वैश्विक भूराजनीतिक परिणाम विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की पक्षपातपूर्ण भूमिका के रूप में सामने आया है, जिसने अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं में सुधार की भारत की मांग के महत्व को उजागर किया है।
उल्लेखनीय है कि पाश्चात्य देशों के विपरीत विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने कोरोना वायरस महामारी से निपटने के लिए चीन की प्रशंसा की। इसका प्रमुख कारण यह रहा कि डबल्यूएचओ के वर्तमान महानिदेशक टेड्रोस घेब्रेयसस इथियोपिया के पुराने माओवादी नेता हैं जो 2017 में चीन की मेहरबानी से ही डबल्यूएचओ के महानिदेशक चुने गए थे। कोरोना संकट में डबल्यूएचओ के चीन के प्रति पक्षपाती झुकाव से उसकी छवि को गहरा नुकसान पहुँचा और इससे यह अप्रासंगिक होता दिख रहा है। ट्रंप प्रशासन ने डब्ल्यूएचओ को चीन की जनसंपर्क (पीआर) एजेंसी करार देते हुए कोरोना वायरस पर डब्ल्यूएचओ की भूमिका को लेकर ही जांच शुरू कर दी है और यूएसए की तरफ से डब्ल्यूएचओ को दी जाने वाली वित्तीय सहायता को रोक दिया गया है। एक प्रकार से डबल्यूएचओ इस वैश्विक स्वास्थ्य संकट के समय वैश्विक नेत्रत्व देने में विफल रहा है और वह चीन की कठपुतली की तरह व्यवहार करता रहा। इसी कारण अब डबल्यूएचओ में सुधारों की मांग उठ रही है। यह आवश्यक हो जाता है कि भविष्य में वैश्विक संगठनों में भारत एक अधिक प्रभावी भूमिका संपादित करे जिससे इन संस्थाओं का अधिक प्रजातान्त्रिक व समावेशी चरित्र विकसित हो सके।
अन्य देशों के विपरीत पाकिस्तान पर कोरोना का एक अलग ही प्रभाव दिखाई दे रहा है। हाल में कोरोना वायरस के बहाने पाकिस्तान ने जेल से कई आतंकियों को छोड़ दिया है। इन मुक्त किए गए आतंकियों में लश्कर-ए-तैयबा का प्रमुख हाफिज सईद भी शामिल है। उल्लेखनीय है कि भारत सरकार के प्रयासों के कारण फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) ने पाक को ग्रे लिस्ट में डाल रखा है और एफएटीएफ के दबाव में ही पाक ने हाल के महीनों में इन आतंकियों को गिरफ्तार कर जेल भेजा था। पाकिस्तान के इस कदम से इन आतंकवादियों को पुनः संगठित होने में मदद मिली है और इससे भविष्य में जम्मू कश्मीर में घुसपैठ की घटनाएं बढ़ सकती हैं। इसका हालिया उदाहरण 5-6 मई को सामने आया, जब जम्मू कश्मीर में आतंकियों के विरुद्ध कार्यवाही में भारतीय सेना के 5 ऑफिसर और जवान शहीद हो गए।
कोविड 19 के प्रभाव विश्व व्यवस्था (ग्लोबल ऑर्डर) को नवीन आकार दे सकते हैं। कोरोना के वैश्विक प्रभाव एक विश्व युद्ध के परिणामों के समान होंगे।
प्रथम विश्व युद्ध के बाद यूरोप विश्व का सबसे महत्वपूर्ण केंद्र बन गया था। दूसरे विश्व युद्ध के बाद अमेरिका (यूएसए) और सोवियत रूस (यूएसएसआर) विश्व के सबसे शक्तिशाली देश बनकर उभरे थे। कोरोना रूपी तृतीय विश्व युद्ध के बाद संभावना यह है कि पोस्ट-कोरोना काल में विश्व का शक्ति संतुलन अमेरिका और यूरोपीय देशों से हटकर दक्षिण और पूर्वी एशिया की ओर झुक सकता है। इस बदले परिदृश्य में अमेरिका और यूरोपीय देश आर्थिक रूप से कमजोर होंगे, विश्व पर उनके राजनैतिक वर्चस्व में कमी आएगी, और वहीं चीन अपने अंतरराष्ट्रीय नेतृत्व को स्थापित करने की भरपूर कोशिश करेगा। चीन की हाल की कुछ गतिविधियों (जैसे कोरोना मुद्दे पर ऑस्ट्रेलिया को धमकाना) से प्रतीत होता है की भविष्य में वह और भी अधिक आक्रामक विदेश नीति अपना सकता है।
इन बदलती हुई परिस्थितियों में भारत के लिए भी एक अवसर होगा। सर्वप्रथम, कोरोना के चलते अमेरिका और यूरोप के देशों में चीन के प्रति जो विश्वास में कमी आई है, उसके कारण वे भारत को एक आर्थिक विकल्प के रूप में देख सकते हैं। इससे चीन से इन देशों का विदेशी निवेश (विशेषतः मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में) भारत की ओर हस्तांतरित हो सकता है। द्वितीय, चीन की आक्रामक नीति के कारण अमेरिका, जापान, और ऑस्ट्रेलिया जैसे देश भारत से और भी मजबूत सामरिक संबंध बनाने को उन्मुख होंगे। तृतीय, कोरोना संकट के समय भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने जिस प्रकार से दक्षेस (सार्क), जी20, गुट निरपेक्ष आंदोलन (नैम) इत्यादि मंचों के माध्यम से अपने नेत्रत्व कौशल को प्रदर्शित किया है और भारत ने जिस प्रकार ‘वसुधैव कुटुंबकम’ की अपनी प्राचीन अवधारणा को मानते हुए विश्व के 100 से भी अधिक देशों में चिकित्सीय सहायता पहुंचाई है, इससे भी भारत के अंतर्राष्ट्रीय कद में वृद्धि होगी। कोरोना के बाद एक नई विश्व व्यवस्था (New World Order) जन्म लेगी और आशा है कि भारत उसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। चीन के ठीक विपरीत कोरोना संकट में भारत विश्व पटल पर एक जिम्मेदार और विश्वसनीय भागीदार देश के रूप में उभर के सामने आया है।
पोस्ट कोविड-19 काल में नई विश्व व्यवस्था नए अवसर व नई चुनौतियां लेकर आएगी। सबसे बड़ी चुनौती होगी – विश्व व्यापी आर्थिक मंदी और अर्थव्यवस्थाओं पर कोविड 19 के आर्थिक प्रभावों की।
भारत इन नवीन चुनौतियों का कैसे सामना करेगा और नवीन अवसरों को कितना भुना पाएगा, यह सब निर्भर करेगा भारत के राजनैतिक नेतृत्व और जनमानस पर। इसी परिप्रेक्ष्य में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने 20 लाख करोड़ के आर्थिक राहत पैकेज की घोषणा की है और भारतीयों के सामने आत्मनिर्भर अर्थव्यवस्था की संकल्पना रखी है। इस समय भारत में नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में एक सक्षम, मजबूत और पूर्ण बहुमत की सरकार केंद्र में है, इसलिए आशा की जा सकती है कि वह निजी क्षेत्र, नौकरशाही व देश के जनमानस के सहयोग से नवीन चुनौतियों का सफलतापूर्वक सामना कर पाएंगे।
(लेखक ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से बी.टेक और एम.टेक. किया है और वर्तमान में आई.आई.टी. दिल्ली से पी.एच.डी कर रहे हैं)
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