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'थ्री ईडियट्स' फिल्म की समीक्षा: बच्चे फेल नहीं होते, व्यवस्था फेल होती है

सफलता ना मिलने की अपेक्षा सामाजिक और शैक्षिक व्यवस्था की रूढिया व पश्चिमी प्रभाव इन आत्महत्याओं के लिए ज्यादा जिम्मेदार प्रतीत होते हैं।


रजीव प्रताप सिंह


राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की वेबसाइट पर उपलब्ध आकड़ों के अनुसार वर्ष 2018 में 10159 छात्रों ने आत्महत्या की। यह आंकड़ा 2017 में 9905 और 2016 में 9478 था। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार भारत में हर घंटे एक छात्र आत्महत्या करता है एवं हर दिन लगभग 28 छात्र आत्महत्याएं करते हैं। वर्ष 2018 आईआईटी, हैदराबाद के एक छात्र ने छात्रावास में आत्महत्या से पहले एक पत्र में लिखा था कि ‘हर दिन थोडा सा जियो, एक ही जिंदगी मिली है।’ राजकुमार हिरानी द्वारा निर्देशित व भारतीय शिक्षा व्यवस्था पर केन्द्रित फिल्म ‘थ्री ईडियट्स’ भी इन्हीं आत्महत्याओं को केंद्र में रखकर बने गई है। कुछ समाज विज्ञानियों का मानना है कि अध्ययन में सफल न होने के कारण ये आत्महत्याएँ होती है। लेकिन यदि सफल न होना ही करण है तो आईआईटी जैसी संस्था में प्रवेश मिलने के बाद भी जो सफलता का एक पैमाना माना जाता है, वहां भी बच्चे आत्महत्या क्यों कर रहे हैं ? मानव संसाधन विकास मंत्रालय, (MHRD) के उच्च शिक्षा विभाग के आंकड़ों के अनुसार 10 भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों (IITs) में 2014 और 2019 के बीच 27 छात्रों ने आत्महत्या कर ली। सात छात्रों के साथ आईआईटी, मद्रास सूची में सबसे ऊपर है। प्रत्येक वर्ष जैसे ही बोर्ड परीक्षाओं के परिणाम आने प्रारंभ होते हैं, छात्रों की आत्महत्याओं की घटनाएँ भी बढ़ने लगती हैं।


भारत में छात्रों की समस्याओं के समाधान के लिए निश्चित तौर से कुछ प्रयास किए गए हैं लेकिन ये प्रयास नाकाफी है। इसके दो करण है पहला तो यह कि इस दिशा में और प्रयास किए जाने की आवश्यकता है और दूसरा यह कि जो प्रयास किए भी गए हैं उनमे से अधिकांश का सही क्रिवान्वायन देखने को नहीं मिलता है।


फिल्म ‘थ्री इडियट्स’ पुरी फिल्म में कई बार वर्तमान शिक्षा व्यवस्था की अनेक कमियों को उजागर करते हुए उस पर चोट करती है। चाहे वह परीक्षा, अंक व नौकरी केन्द्रित शिक्षा व्यवस्था हो, रैगिंग हो या वर्षों से चली आ रही रटने की पद्धति पर आधारित परीक्षाएं हो।

फिल्म में रेंचो का किरदार निभाने वाले आमिर खान क्लासरूम में एक प्रोफेसर के मशीन कि परिभाषा पूछने पर बताते हैं कि कोई भी चीज जो मनुष्य का काम आसन करती है या समय बचाएं, वह मशीन है। इस पर प्रोफेसर बोलते हैं कि परिभाषा क्या है? और न बता पाने पर क्लासरूम से बहार भगा देते हैं, वही एक दूसरा छात्र जब रटी हुई परिभाषा बताता है तो प्रोफेसर उसे खूब प्रोत्साहित करते हैं। इसका तात्पर्य यह है कि आज भी हमारी औपचारिक शिक्षा व्यवस्था में अनेक रूढिया हैं। शैक्षिक नवाचार के क्षेत्र में कार्यरत दिल्ली स्थित एक संगठन ‘शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास’ का मानना है कि आज शिक्षण जगत में अनेक नवाचारों की आवश्यकता है। औपचारिक शिक्षा को वर्तमान भारतीय सन्दर्भों से जोड़ कर देखे जाने की आवश्यकता है।


फिल्म में जॉय का किरदार निभा रहे अली फजल के आत्महत्या करने के बाद जब रेंचो कॉलेज के निर्देशक के पास जाकर इसकी शिकायत करता है तो निर्देशक बोलते हैं कि यदि वह एक तनाव नहीं झेल सकता तो जीवन में और तनाव आते उनको कैसे झेलता? तुम इसके लिए मुझे दोषी ठहराओगे? तब रेंचो कहता है कि सर!! मैं आपको दोष नहीं दे रहा हूँ, मैं व्यवस्था को दोष दे रहा हूँ। परीक्षाओं में मार्क्स केन्द्रित इस शिक्षा व्यवस्था का परिणाम है कि भारत में विश्व में सबसे ज्यादा छात्र आत्महत्याएँ करते हैं। रेंचो प्रोफेसर से कहता है कि यहाँ कॉलेज में ज्ञान नहीं मिलता बल्कि यह बताया जाता है कि ज्यादा मार्क्स कैसे हासिल करना है। अर्थात सफलता न मिलने की अपेक्षा सामाजिक और शैक्षिक व्यवस्था की रूढ़ियाँ व शिक्षा में पश्चिमी प्रभाव इन आत्महत्याओं के लिए ज्यादा जिम्मेदार प्रतीत होते हैं।


फिल्म में एक संवाद आता है कि मैं 5:15 पर पैदा हुआ और 5:16 पर अब्बू ने कहा कि मेरा बेटा इंजिनियर बनेगा। यह भारतीय समाज की सच्चाई है कि परिवार से यह बच्चे पर थोप दिया जाता है कि उनका बच्चा क्या बनेगा। इसका बड़ा कारण यह है कि भारतीय मानस ने दो चार पेशों को छोड़कर अन्य पेशों को करियर की सम्भावना के रूप में देखा ही नहीं।

2017 में लोकनीति-सीएसडीएस द्वारा जारी एक सर्वेक्षण अनुसार प्रत्येक 10 में से 4 छात्र अवसाद से गुजरता है। एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार भारत में आत्महत्या की दर 15-29 आयु वर्ग में सबसे अधिक है। रिपोर्ट कहती है कि पुरुषों में 40% आत्महत्याएं 15-29 वर्ष की आयु के व्यक्तियों द्वारा की गई थीं जबकि महिलाओं के सन्दर्भ में यह आंकड़ा लगभग 60% था। ये सभी आंकड़े हमे वर्तमान शिक्षण पद्धति और शिक्षा से सम्बंधित सामाजिक ढांचे पर पुनर्विचार करने के लिए प्रेरित करते हैं। इस सन्दर्भ में स्वामी विवेकानंद की शिक्षा कि परिभाषा अत्यंत प्रासंगिक है। स्वामी विवेकानंद शिक्षा के स्वरुप के बारे में कहते हैं कि शिक्षा का स्वरुप ऐसा होना चाहिए जो चरित्र का निर्माण करे, मन को प्रबल करें और बुद्धि को विस्तार दें एवं व्यक्ति को आत्मनिर्भर बनने के लिए तैयार करे। शिक्षा के तीन उद्देश्यों के बारे में बताते हुए स्वामी विवेकानंद बताते हैं कि शिक्षा का पहला उद्देश्य चरित्र निर्माण होना चाहिए। क्योंकि चारित्रिक गुणों का अभाव ही भ्रष्टाचार, सांप्रदायिक ध्रुवीकरण, घृणा और हिंसा जैसे कई अपराधों का कारण है।


शिक्षा का दूसरा लक्ष्य मन को प्रबल करना है। परीक्षा में असफल होने के डर से बच्चे आत्महत्या करते हैं क्योंकि वे मानसिक रूप से मजबूत नहीं होते हैं। जीवन में अनेक कठिन परिस्थितियों का सामना करने के लिए बच्चों के मन को प्रबल करने की आवश्यकता है। इससे वे मानसिक तौर से मजबूत होंगे। समाज में असफलताओं के ऊपर विजय पाकर सफलता प्राप्त करने के उदाहरणों को उनके औपचारिक शिक्षा का अंग बनाया जाना चाहिए।


स्वामी विवेकानंद के अनुसार शिक्षा का तीसरा लक्ष्य बुद्धि का विस्तार है। बुद्धि के विस्तार का मतलब केवल बुद्धि का विकास नहीं है अपितु इसका तात्पर्य बच्चों में तार्किक क्षमता विकसित करने से है।

इससे वे सही और गलत के बीच फर्क कर सकेंगे। इससे उन बच्चों में आलोचनात्मक ढंग से सोचने की क्षमता विक्सित होगी और वे कठिनाइयों और असफलताओं का सामना करने पर अपने जीवन को समाप्त नहीं करेंगे। माता-पिता, शिक्षक और वे सभी जो बच्चों की शिक्षण प्रक्रिया में शामिल हैं उन सभी के ऊपर छात्रों का मार्गदर्शन करने की एक बड़ी जिम्मेदारी भी है। उन्हें छात्रों को उनके ढंग से सोचते हुए उनकी समस्याओं का संधान करना होगा। आज परीक्षा में मार्क्स केन्द्रित शिक्षा की बजाय बच्चों को स्वामी विवेकानंद के शैक्षिक व्यवस्था के स्वरुप के अनुसार ‘जीवन जीने के लिए शिक्षा’ के ध्येय के साथ शिक्षा प्रदान करने की आवश्यकता है। आज शिक्षा व्यवस्था में व्याप्त जड़ता एवं रूढ़ियों से आगे बढ़कर नवाचारों को अपनाते हुए शिक्षा व्यवस्था के नए स्वरुप को स्थापित करने की आवश्यकता है।


(Author is Ph.D. Research Scholar in Journalism and Mass Communication Department Guru Ghasidas Vishwavidyalaya, Koni, Bilaspur, Chhattisgarh. He is also an intern with Academics4Nation)

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