सम्भवतः पहली बार देश की किसी शिक्षा-नीति ने मुक्त और दूरस्थ शिक्षा की प्रासंगिकता को इतने स्पष्ट शब्दों में स्वीकार किया है।
डॉ. गौरव सिंह
भारत सरकार ने जब से नयी राष्ट्रीय शिक्षा नीति-२०२० देश को समर्पित की है, तब से ही हर ओर उल्लास और उमंग का वातावरण बन गया है। स्थान-स्थान पर होने वाली परिचर्चाएँ, समागम और विचार-विमर्श शिक्षा से जुड़े विविध क्षेत्रों में इसके त्वरित और सफल क्रियान्वयन के मार्ग खोज रहे हैं। ऐसे में मुक्त और दूरस्थ शिक्षा में इसके अनुपालन पर चर्चा न हो, यह तो सम्भव नहीं। यदपि मुक्त और दूरस्थ शिक्षा के देश की महत्वाकांक्षी अपेक्षाएँ होना कोई नयी बात नहीं है, परन्तु कालान्तर में भारत में शिक्षा के विकास में इसके योगदान पर मुक्त ह्रदय से प्रशंसा हुयी हो, ऐसे अवसर और दृष्टान्त विरले ही दृष्टिगोचर होते हैं।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति-२०२० को पढ़ते हुए मुक्त और दूरस्थ शिक्षा (ओडीएल) के अभ्यासी होने के कारण सबसे पहले नजर जिस कथन पर ठहरती है, वह है “ओडीएल और ऑनलाइन शिक्षा, गुणवत्तापूर्ण उच्चतर शिक्षा तक पहुँच सुनिश्चित करने के लिए एक प्राकृतिक मार्ग प्रदान करता है (१२.५) ।” सम्भवतः पहली बार देश की किसी शिक्षा-नीति ने मुक्त और दूरस्थ शिक्षा की प्रासंगिकता को इतने स्पष्ट शब्दों में स्वीकार किया है। पूरी नीति में जहाँ-जहाँ भी मुक्त और दूरस्थ शिक्षा की उपयोगिता को रेखांकित किया गया है, लगभग सभी स्थानों से इससे उच्चतम गुणवत्ता सुनिश्चित करने और बदलते परिदृश्य के अनुरूप खुद को नए रंग-रूप में ढाल कर देश में शिक्षा के विकास में सक्रिय और सकारात्मक योगदान की अपेक्षा की गयी है। आइये देखें, कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति ने मुक्त और दूरस्थ शिक्षा के लिए किन किन अवसरों का निर्माण किया है और हम कैसे उन्हें प्राप्त कर सकते हैं?
उच्च शिक्षा के क्षेत्र में मुक्त और दूरस्थ शिक्षा पहली बड़ी भूमिका की ओर राष्ट्रीय शिक्षा नीति के बिंदु ५.२३ में शिक्षक शिक्षा में इंगित किया गया है। वर्षों से सेवारत अप्रशिक्षित शिक्षकों के प्रशिक्षण और प्रशिक्षित शिक्षकों के सेवा-कालीन प्रवोधन में इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय और राष्ट्रीय मुक्त विद्यालयी संगठन ने अतुलनीय योगदान दिया है। एक बार पुनः दूरदराज के शिक्षार्थियों और सेवारत शिक्षकों की प्रशिक्षण आवश्यकताओं को पूरा करने की अपेक्षा मुक्त और दूरस्थ शिक्षा से की गयी और साथ ही अन्य बहुत से संस्थानों को ऐसे पाठ्यक्रम प्रारम्भ करने के अवसर देने की ओर इशारा किया गया है। ऐसे में सबसे बड़ी चुनौती शिक्षक-शिक्षा के पाठ्यक्रमों में गुणवत्ता सुनिश्चित करने की होगी।
इसके बाद बिंदु १०.१० में मुक्त और दूरस्थ शिक्षा से सकल नामांकन के लक्ष्य को प्राप्त करने और शाश्वत विकास के लक्ष्य-२०३० को सफलतापूर्वक अर्जित करने में भी योगदान की अपेक्षा की गयी है। मुक्त और दूरस्थ शिक्षा के श्रेष्ठ संस्थानों से उच्च-गुणवता वाले ऑनलाइन पाठ्यक्रमों के विकास करने के लिए कहा गया है और साथ ही देश के अन्य श्रेष्ठ संस्थानों को भी इस दिशा में कार्य करने के लिए प्रक्रियागत परिवर्तन प्रारम्भ कर दिए गए है। ऑनलाइन पाठ्यक्रमों को परंपरागत पाठ्यक्रमों के साथ मिश्रित (blended) रूप से भी बढ़ावा देने की चर्चा इसी बिंदु में की गयी है। इसका अर्थ यह है कि वर्षों से मुक्त और दूरस्थ शिक्षा में एकाधिकार रखने वाली संस्थाओं को अब देश की अन्य श्रेष्ठ संस्थाओं से पाठ्यक्रमों की गुणवत्ता, शिक्षार्थी सहायता सेवाओं और नयी तकनीकी के अपनाने में कड़ी प्रतिस्पर्धा के लिए तैयार होना होगा। अपने पाठ्यक्रमों को समय की मांग के अनुरूप बदलना होगा और शिक्षार्थियों की आवश्यकता के अनुसार नए-नए पाठ्यक्रम तैयार करने होंगे।
बिंदु ११.७ में इंगित किया गया है कि भारतीय ज्ञान परंपरा और संस्कृति को बढ़ावा देने वाले विषयों में सभी स्नातक स्तर के शिक्षार्थियों को अध्ययन के अवसर उपलब्ध कराने में मुक्त और दूरस्थ शिक्षा के माध्यम से पाठ्यक्रमों को पूरा करने पर क्रेडिट दिए जायेंगे। इसका अर्थ यह हुआ कि मुक्त और दूरस्थ शिक्षा संस्थानों को अपने प्रचलित पाठ्यक्रमों के साथ विभिन्न विषयक्षेत्रों में भारतीय ज्ञान परम्परा से जुड़े नए-नए कम क्रेडिट वाले पाठ्यक्रमों को विकसित करने की दिशा में कार्य प्रारम्भ कर देना चाहिए।
बिंदु १२.५ में विस्तार से मुक्त और दूरस्थ शिक्षा के भविष्य पर प्रकाश डाला गया है। इसमें स्पष्ट किया गया है कि मुक्त और दूरस्थ शिक्षा को गुणवत्ता सुनिश्चित करते हुए प्रसार करना है और इसके लिए नियम, मानक और समुचित दिशा निर्देश निर्धारित किये जायेंगे जो सभी उच्चशिक्षा संस्थानों को एक रूपरेखा के रूप में उपलब्ध कराये जायेंगे।
बिंदु १२.६ में मुक्त और दूरस्थ शिक्षा, ऑनलाइन और परंपरागत शिक्षा को वैश्विक गुणवत्ता मानदंडों के समतुल्य बनाये जाने की अपेक्षा की गयी है, अर्थात सभी स्वरूपों में गुणवत्ता सुनिश्चित करने के उच्च-मानदण्ड निर्धारित भी करने होंगे और उन्हें समय-बद्ध तरीके से प्राप्त भी करना होगा। गुणवत्ता एक विषद विचार है। मुक्त और दूरस्थ शिक्षा के क्षेत्र में गुणवत्ता का अर्थ मात्र पाठ्यक्रमों और पाठ्यसामग्री की गुणवत्ता तक सीमित नहीं है। वरन इसमें सहायता सेवाओं, परीक्षा और अन्य सभी जुड़े क्षेत्रों में होने वाले परिवर्तन भी अपेक्षित है। अब समय आ गया है कि मुक्त और दूरस्थ शिक्षा से जुड़े संस्थान और व्यक्ति प्रयोगधर्मी बने, नए-नए प्रतिमानों का अध्ययन और व्यस्थापन करें और ऑनलाइन शिक्षा की ओर कदम बढ़ाते हुए समय से कदम-ताल मिलाएं। यदि अभी भी किसी संस्थान में परम्परा की ओट में जड़ता रह गयी, तो वह समय की दौड़ में बहुत पीछे छूट जायेगा।
मुक्त और दूरस्थ शिक्षा के लिए एक और बड़ा अवसर, व्यावसायिक पाठ्यक्रमों के क्षेत्र में बिंदु १६.५ में इंगित किया गया है। भारतीय लोक कलाओं के विकास और नयी पीढ़ी को उनमें पारंगत बनाने के लिए मुक्त और दूरस्थ शिक्षा के माध्यम से पाठ्यक्रमों को प्रारम्भ करने के अवसर तलाशने को कहा गया है। यदि हम इसमें सफल हो पाए तो न केवल देश की लुप्तप्राय हस्तकलाओं और देशज ज्ञान को संजीवनी दे पाएंगे वरन मुक्त और दूरस्थ शिक्षा के लिए एक नए कार्य-क्षेत्र का मार्ग भी प्रशस्त होगा।
यही नहीं, मुक्त और दूरस्थ शिक्षा के भविष्य को इस राष्ट्रीय शिक्षा नीति में ऑनलाइन शिक्षा के रूप में रेखांकित किया गया है। अतः अब परम्परागत मुक्त और दूरस्थ शिक्षा को अपने पुराने चोले को धीरे धीरे त्यागकर ऑनलाइन शिक्षा रुपी नए कलेवर में ढलना होगा। ऑनलाइन शिक्षा न केवल परम्परागत विषयों में शिक्षा के नए अवसर खोलेगी वरन कभी भी कहीं से भी गुणवत्तायुक्त पाठ्यक्रम पूरा करने की स्वतंत्रता और अवसर प्रत्येक विद्यार्थी को उपलब्ध कराएगी। सबसे बड़ी चुनौती इस नए कलेवर के लिए खुद को तैयार करने और सबसे पहले कदम बढ़ाने की है। वह युग समाप्ति की ओर है जब कुछ संस्थान यह समझते थे कि मुक्त और दूरस्थ शिक्षा पर केवल उसकी विशेषज्ञता और एकाधिकार है। नए नए संस्थान अब आगे आ रहे हैं और देश के शीर्ष १०० विश्वविद्यालयों को मिलने वाली अनुमति इस क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा को और बढ़ाएगी।
चुनौतियाँ तो हैं, पर अवसर उससे ज्यादा हैं। मुक्त और दूरस्थ शिक्षा के लिए एक नया और बहुत बड़ा क्षेत्र शिक्षकों के सतत वृत्तिक विकास का है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति में ये प्रावधान है कि सभी विद्यालयी शिक्षक प्रतिवर्ष ५० या उससे अधिक घंटों का सतत वृत्तिक विकास का पाठ्यक्रम दूरस्थ और ऑनलाइन शिक्षा के माध्यम से पूरा करेंगे। एक अनुमान के अनुसार देश में लगभग ९० लाख से अधिक शिक्षक प्राथमिक से लेकर उच्चतर माध्यमिक विद्यालयों में कार्यरत हैं, इनमे से सभी को प्रतिवर्ष सतत वृत्तिक विकास के पाठ्यक्रम उपलब्ध कराना किसी भी एक संस्था के लिए बहुत बड़ी चुनौती है, ऐसे में यदि इग्नू जैसे अनुभवी संस्थान अपने देशव्यापी नेटवर्क की मदद से राज्यसरकारों का सहयोग करें और उनकी जरूरतों को जानकार उनके विद्यालयों के अध्यापकों लिए छोटे छोटे १ या २ क्रेडिट के पाठ्यक्रम तैयार कर दें, तो एक लक्ष्य आसानी से प्राप्त हो सकता है।
ऐसे ही एक और नया अवसर शोधार्थियों को शिक्षण शास्त्र का प्रशिक्षण प्रदान करने के क्षेत्र में दिखाई दे रहा है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति के बिंदु १५.९ में यह प्रस्ताव है कि प्रत्येक पीएच. डी. करने वाला शोधार्थी (चाहे वह किसी भी विषय का हो,) को अपने शोध काल के दौराम अपने शोध के मूल विषय से जुड़ा शिक्षणशास्त्र का क्रेडिट आधारित पाठ्यक्रम पूरा करना होगा। इग्नू जैसे राष्ट्रीय संस्थाओं को तत्काल इस दिशा में कार्य प्रारम्भ कर देना चाहिए और सभी मुख्य विषय क्षेत्रों में २-४ क्रेडिट का शिक्षणशास्त्र का आदर्श मानक पाठ्यक्रम तैयार करना चाहिए और देश के सभी विश्वविद्यालयों के शोधार्थियों को ऑनलाइन पाठ्यक्रम के रूप में उपलब्ध कराना चाहिए।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति के बिंदु २४.४ (अ) में इग्नू तथा कुछ अन्य संस्थाओं से अपेक्षा की गयी है कि ऑनलाइन शिक्षा से जुड़े विविध प्रारूपों, इ-विषयवस्तु के स्वरूपों, प्रक्रियाओं और अध्ययन विधियों पर वे संक्षिप्त प्रयोग (पायलट स्टडी) करें और उसके परिणामों के आधार पर देश में शिक्षा-तंत्र में आवश्यक सुधारों में योगदान करें। मुक्त और दूरस्थ शिक्षा में अपनी विशेषज्ञता सिद्ध कर चुके संस्थान होने के नाते इग्नू को इस दिशा में प्रयोग प्रारम्भ कर देने चाहिए। इस दिशा में होने वाले अध्ययन, शोध और संक्षिप्त प्रयोग न केवल संस्थागत विकास में योगदान करेंगे वरन समय की गति को पहचानकर उसके अनुरूप स्वयं में परिवर्तन के मार्ग भी प्रशस्त करेंगे।
कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि भारत की शिक्षा को २१वीँ में उन्नति के मार्ग पर ले जाने में मुक्त और दूरस्थ शिक्षा तथा ऑनलाइन शिक्षा को एक बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका निभानी है। देश के युवाओं को नयी चुनौतियों के लिए तैयार करना है तथा राष्ट्रीय और वैश्विक लक्ष्यों को प्राप्त करने में अपना उल्लेखनीय योगदान भी सुनिश्चित करना है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति-२०२० को लेकर वर्तमान उल्लास और उत्साह इसके लिए प्रोत्साहन भी दे रहा है और अवसर भी, आइये हम सब मिलकर इस अवसर का लाभ उठायें और मुक्त और दूरस्थ शिक्षा के अभ्यासी होने के नाते अपना योगदान भी दें।
(डॉ. गौरव सिंह, शिक्षा विद्यापीठ, इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय, नयी दिल्ली)
Comments