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वर्तमान समय में भारत-चीन संबंध एवं चीन की विस्तारवादी नीति

चीन हमेशा से हीं आक्रामक एवं महत्वाकांक्षी देश रहा है जो इसके नीतियों में भी स्पष्ट दिखाई देता है।



चंद्रशेखर शर्मा


'प्राचीनतम सभ्यता' वाले दो देश भारत और चीन 1950 के दशक में चीन द्वारा तिब्बत के अधिग्रहण के साथ और बाद भी सीमा साझा करते आ रहे हैं। परंतु कालांतर में दोनों देशों के बीच सीमा विवाद एवं तनाव की स्थिति बढ़ने के कारण आपस में होने वाला संवाद, व्यापार, खेल आदि बुरी तरह प्रभावित हुआ और तमाम प्रयासों के बावजूद यह स्थिति पूरी तरह सामान्य न हो सकी। भारत की प्रवृत्ति कभी आक्रामक नहीं रही परंतु चीन आरंभ से ही विस्तारवादी मानसिकता से ग्रस्त रहा है।

भारत-चीन सीमा विवाद का इतिहास लगभग भारत एवं चीन के आजादी के साथ हीं शुरू होता है।आजादी के कुछ ही वर्ष पश्चात दोनों के बीच हुए युद्ध ने आपसी रिश्तों को दुश्मनी में बदल दिया। चीन की वाचाल एवं शत्रुवत आक्रामक नीतियों ने दोनों देशों के बीच की दूरी को निरंतर ही बढ़ाने का कार्य किया है।इस विवाद का कोई तात्कालिक समाधान दिखाई नहीं देता क्योंकि ऐसे विवादों के लिए दोनों देशों के बीच कोई ठोस नीति 70वर्षों के बाद भी नहीं बन पाई है।हालांकि दोनों देशों के द्वारा अलग-अलग समय पर इस दिशा में कुछ कार्य ज़रूर किए गए हैं जैसे 1996 में राजनैतिक विश्वास बढ़ाने पर सहमति एवं एल.ए.सी रेखा को सही करार देना आदि।

भारत हमेशा से अपने सभी पड़ोसी देशों के साथ सकारात्मक संबंध बनाने पर जोर देता आया है एवं चीन से भी आत्मीय संबंध बनाने की निरंतर कोशिश रही है। जवाहर लाल नेहरू से लेकर राजीव गांधी,नरसिम्हा राव,अटल बिहारी वाजपेयी एवं मनमोहन सिंह आदि सभी प्रधानमंत्रियों ने बेहतर रिश्ते एवं व्यापार हेतु चीन का दौरा किया।2014 में नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के लगभग तुरंत बाद अहमदाबाद में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग हुई मुलाकात (हालांकि इस समय भी चीनी सैनिकों के द्वारा सीमा आतिक्रमण की घटनाएं सामने आती हैं) एवं 2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का चीन दौरा भी इसी कड़ी को आगे बढ़ाती है लेकिन इसके पश्चात 2017 में हुए डोकलाम विवाद ने संबंधों में फिर से कड़वाहट पैदा कर दी।डोकलाम के अलावा चीन अरुणाचल प्रदेश एवं लद्दाख पर भी अपना दावा करता आया है। अरुणाचल प्रदेश एवं कश्मीर में भारत द्वारा लिए गए किसी भी कदम का चीन हमेशा से विरोध करता आया है।भारत द्वारा कश्मीर से धारा370 को समाप्त करना चीन के लिए घोर चिंता का विषय बन आया जिसके परिणाम स्वरूप चीन ने डोकलाम में सैन्य क्षमता को तत्काल बढ़ा दिया।


10 मई 2020 को भी भारत एवं चीनी सैनिकों के बीच नाथु ला(सिक्किम) में संघर्ष देखने को मिला जिसमें 11सैनिक घायल हुए।इसके परिणामस्वरूप 15-16 जून को लद्दाख में 20भारतीय सैनिक एवं 43 चीनी सैनिक हताहत हुए।हिन्दुस्तान टाइम्स(18 जून 2020) के अनुसार प्रधानमंत्री जी ने देश को संबोधित करते हुए कहा "the sacrifice made by our soldiers will not go in vain"। गलवान घाटी में हुए संघर्षों के कारण हीं सम्पूर्ण भारत में चीनी वस्तुओं के बहिष्कार की मांग एकस्वर में उठी जिसका परिणाम यह रहा कि भारत सरकार को कड़े कदम उठाने पड़े एवं 59 चाइनीज ऐप पर प्रतिबंध लगा दिया गया।


चीन हमेशा से हीं आक्रामक एवं महत्वाकांक्षी देश रहा है जो इसके नीतियों में भी स्पष्ट दिखाई देता है।गरीब एवं छोटे देशों को बड़ी मात्रा चीन द्वारा कर्ज दिया जाता है फिर जब वह देश कर्ज वापसी में समर्थ नहीं होता तो चीन द्वारा मनमाने ढंग से भूमि का अधिग्रहण कर लिया जाता है जिसका उपयोग चीन द्वारा अपनी सामरिक स्तिथि को मजबूती प्रदान करने के लिए होता है। तिब्बत का बलपूर्वक अधिग्रहण,थाईलैंड एवं ताइवान के नागरिकों द्वारा लोकतंत्र की मांग पर चीनी सरकार के आदेश पर बलपूर्वक सैन्य कार्रवाई उसकी दमनकारी नीति तो स्पष्ट परीलक्षित करती है।

चीन की सभी नीतियों से भारत सरकार भलीभांति परिचित है। उसकी नीतियों के मद्देनजर भारत सरकार ने सीमा क्षेत्र को बुनियादी रूप से सशक्त करने का लक्ष्य बनाया है ताकि चीन की किसी भी चाल पर पलटवार किया जा सके। 2014 के बाद से सीमा क्षेत्रों में ढांचागत निर्माण तेज़ हुए हैं जिससे पहले के मुकाबले अब देश के विभिन्न स्थानों से जुड़ाव ज़्यादा सुगम होगा। हिन्दुस्तान टाइम्स के रक्षा मामलों के वरिष्ठ पत्रकार राहुल सिंह के शब्दों में कहें तो 'पिछले पांच वर्षों में भारतीय सीमाओं को बेहतर बनाने पर ज़्यादा ध्यान बढ़ाया गया है।


प्राचीन काल से हीं चीन का सबसे अहम व्यापारिक मार्ग 'सिल्क रूट' रहा है जिसे पुनः संचालित करना बेहद महत्वपूर्ण है लेकिन भारत का इसमें दिलचस्पी ना होना चीन के लिए चिंता का विषय है। साथ हीं वन बेल्ट वन रोड (ओ.बी.ओ.आर) में भागीदारीता को लेकर भारत का तटस्थ नज़रिया भी चीन की चिंता को और बढ़ाता है।इसके साथ हीं चीन द्वारा सीमा क्षेत्र में बड़े-बड़े बांधों का निर्माण भारत के लिए भी आपदा स्वरूप हीं है।हालिया संदर्भ में ही चीन के बांधों द्वारा छोड़े गए जल से असम में वृहद स्तर पर बाढ़ की समस्या को देखा गया जिसने असम की समान्य जीवन को अस्त-व्यस्त कर दिया। बिहार राज्य में तो ऐसी स्तिथि प्रत्येक वर्ष देखी जाती है जो भविष्य के लिए चुनौतीपूर्ण है।


हालिया समय में संपूर्ण विश्व वैश्विक महामारी कोविड19 के दंश को झेल रहा है। इस महामारी का जन्मदाता भी चीन हीं है जिसके कारण लाखों जानें गई एवं सभी देशों की अर्थव्यवस्था पर काफी दबाव देखा जा रहा है।इसके बावजूद चीन अपने हरकतों से बाज नहीं आ रहा और लगातार हीं इसे पश्चिमी देशों की सोची-समझी साजिश बता रहा है।


वैश्विक परिप्रेक्ष्य में देखा जाए तो दोनों देशों को सीमा विवाद का निपटारा एक ठोस दस्तावेज को अपनाकर आपसी सहमति से करना चाहिए ताकि संघर्षों में बर्बाद हो रहे बहुमूल्य जीवन एवं तनाव को समाप्त किया जा सके और इस आपसी तनाव के स्थान पर नवीन वैज्ञानिक नीतियों को अपनाकर विकसित देश बनने पर ज्यादा जोर दिया जा सके जो दोनों देशों के लिए हितकर साबित होगा।


(Author is an Inter with Academics4Nation. He is doing MA from DU.)

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