राजीव प्रताप सिंह
संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनियो गुटेरस ने कोविड -19 महामारी के खिलाफ वैश्विक लड़ाई में अन्य देशों की मदद करने के लिए भारत को सलाम किया। भारत द्वारा अमेरिका सहित कई देशों में मलेरिया रोधी दवा हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन की आपूर्ति भेजे जाने के कुछ दिनों बाद ये बातें एंटोनियो गुटेरस के प्रवक्ता ने बताई। गौरतलब है कि हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन की पहचान यूएस फूड ऐंड ड्रग ऐडमिनिस्ट्रेशन द्वारा कोविड -19 के संभावित उपचार के रूप में की गई है और न्यूयॉर्क में 1,500 से अधिक कोरोनो वायरस रोगियों पर इसका परीक्षण किया जा रहा है। यूएस फूड ऐंड ड्रग ऐडमिनिस्ट्रेशन के इस दावे के बाद विश्व भर में इस दवा कि मांग बढ़ गई और आकंड़ों के अनुसार अमेरिका ही नहीं अपितु अब तक विश्व के 110 देशों ने भारत से हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन दवा मांगी है, जिसमें अनेक देशों को भारत ने भेज दिया है और कुछ देशों को सप्ताहांत तक पहुँच जाएगी। भारत अपने पड़ोसी देशों अफगानिस्तान, भूटान, बांग्लादेश, नेपाल, मालदीव, मॉरिशस, श्रीलंका और म्यांमार को भी यह दवा भेज रहा है।
एक टीवी रिपोर्ट के अनुसार पिछले दिनों तो पाकिस्तान ने भी भारत से इस दवा की मांग की है। इस विषम परिस्थिति में भी भारत ने पुराने वैमनस्य को भूलते हुए कुछ देशों को जो संयुक्त राष्ट्र में कश्मीर मुद्दे पर भारत के खिलाफ वोट करते रहे; उदाहरण के लिए मलेशिया, टर्की इत्यादि को भी मदद मुहैया करा रहा है। इस विषय पर कुछ लोगों ने कहा कि भारत को इसकी आवश्यकता पड़ सकती है इसलिए हमें इसका निर्यात रोक देना चाहिए। इस विवाद के बाद भारत सरकार ने स्पष्ट किया कि हमारे पास पर्याप्त स्टॉक है। एक दवा निर्माता कंपनी के मालिक ने कहा कि भारत के पास प्रति महीने 10 करोड़ टेबलेट्स बनाने की क्षमता है।
पिछले दिनों भी हमने देखा ही कि विश्व के सबसे शक्तिशाली देश माने जाने वाले अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने भी अमेरिका की मदद करने पर भारत और यहाँ के लोगों की प्रशंसा की। यहाँ तक कि विश्व स्वस्थ्य संगठन ने भी भारत सरकार की सराहना करते हुए कहा कि आने वाले समय में होने वाली आर्थिक समस्याओं के बावजूद भारत सरकार ने सख्त कदम उठाते हुए डेली वेज पर काम करने वाले लोगों का विशेष ध्यान रखा है।
इसी दौरान भारत के ही कुछ बुद्धजीवीयों द्वारा मोदी सरकार के द्वारा उठाये गए कदम, जिसकी सम्पूर्ण विश्व सराहना कर रहा है, उसमें तरह-तरह की खामियां निकालते नहीं थक रहे है। लोकतंत्र में आलोचना का विशेष स्थान है। लेकिन आलोचना की भी मर्यादा होती है और यह कभी भी समय, काल और परिस्थिति के अनुसार की जाती है। आलोचना की आड़ में वोट बैंक की राजनीति नहीं की जानी चाहिए। सरकार के लॉक डाउन के निर्णय को सोनिया गाँधी ने इसे अनियोजित तो वहीं राहुल गाँधी ने बिना रणनीति के बताया। इस होड़ में वामपंथी भी पीछे नहीं है. शुक्रवार को एक वामपंथी ने तो भारत में कोरोना की स्थिति पर बात करते हुए यह बता दिया कि भारत में स्थिति नरसंहार जैसी है। कुछ बुद्धिजीवियों द्वारा बहुत सुनियोजित ढंग से दुष्प्रचार करने और सामजिक विद्वेष का माहौल खड़ा करने की लगातार कोशिश की जा रही है। आज प्रत्येक भारतवासी को यह समझने की आवश्यकता है कि यह लड़ाई किसी विचार, धर्म या पंथ के विरुद्ध नहीं अपितु न दिखाई देने वाले एक चाइना वायरस के खिलाफ है। जिसने सम्पूर्ण मानव समाज को, सम्पूर्ण विश्व को अपने प्रकोप से त्रस्त कर रखा है। अर्थात यह लड़ाई मानवता के रक्षा की है। यह किसी एक विचार या व्यक्ति के बस की बात नहीं है, इसके लिए हम सभी अनन्य विचारों के लोगों तथा संगठनों इत्यादि को एक साथ खड़ा होना होगा। आज संपूर्ण विश्व संकट की इस घड़ी में भारतीय संस्कृति से सीख रहा है। यदि हम कोरोना के शुरुवाती दिनों में देखें तो भारत ने पूरे विश्व को अभिवादन के लिए ' नमस्ते ' का मार्ग दिखाया। रविवार को हार्वर्ड विश्वविद्यालय के प्रोफेसर आर्थर सी. ब्रुक्स ने कहा कि ये लॉक डॉउन हमें ऐसे ही नहीं जाने देना चाहिए अपितु इसको वानप्रस्थ आश्रम की तरह स्वीकार करके खुशियों के उपक्रम पर विचार करना चाहिए।
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने विभिन्न राहत पैकेज के बारे में बताते हुए कहा कि इससे अन्य देशों को भी यह समझना चाहिए कि उन्हें किन चीजों का ध्यान रखने की आवश्यकता है। भारत सरकार की विभिन्न राहत पैकेज की चर्चा करते हुए विश्व स्वास्थ्य संगठन के प्रमुख टेड्रोस एडहानॉम ने जिन पैकेज का उल्लेख किया उनमें फ्री कुकिंग गैस का वितरण, गरीबों को कैश ट्रांसफर तथा जरुरतमंदों को राशन उपलब्ध कराना इत्यादि है। भारत में कुछ लोगों ने कहा कि भारत इस लड़ाई के लिए या लॉक डाउन जैसी स्थिति के लिए तैयार नहीं था। यदि हम ध्यान से देखें तो पाएँगे कि वैश्विक स्तर पर भारत सबसे मुस्तैदी के साथ इस लड़ाई को लड़ रहा है।
विश्व स्वस्थ्य संगठन के प्रमुख ने जिन राहत पैकेज की प्रशंसा की, उन सभी के लिए हमारी तैयारी बहुत पहले से है। चाहे वह डीबीटी के माध्यम से गरीबों एवं जरुरतमंदों के खातों में कैश ट्रांसफर की बात हो तो उसके लिए प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के तहत सरकार के पास पहले से जरुरतमंद लोगों सूची उपलब्ध थी। इसके अलावा गरीब परिवारों को गैस सिलिंडर उपलब्ध कराने के मामले में भारत सरकार के पास उज्ज्वला योजना के माध्यम से जरुरतमंदों की सूची उपलब्ध थी। इसके अलावा अनेक अन्य लोककल्याणकारी योजनाओं के माध्यम से भी सरकार लगातार जरुरतमंदो तक पहुँचने की कोशिश कर रही है।
इसके अतिरिक्त पूरे देश भर से यदि लोग पीएम केयर में अपना योगदान दे पा रहे है तो यह भी दूर दराज के क्षेत्रों में इन्टरनेट उपलब्ध होने और पिछले दिनों भारत में डिजिटल लिटरेसी बढ़ने का ही परिणाम है। इसके अतिरिक्त कोविड-19 के दौरान यदि बच्चे ऑनलाइन क्लासेज कर पा रहे है, जिससे उनकी पढ़ाई बिना बाधित हुए लगातार चल रही है तो यह भी उसी इन्टरनेट की उपलब्धता का परिणाम है। इन सभी के अतिरिक्त भारत के पास राशन के साथ-साथ हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन का भी पर्याप्त भंडार उपलब्ध है। जो यह कह रहे है कि भारत ने देर से तैयारी शुरू की, मंगलवर को राष्ट्र को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने स्वयं इसका उत्तर दे दिया। उन्होंने बताया कि जब हमारे यहां कोरोना का एक भी केस नहीं था, उससे पहले ही भारत ने कोरोना प्रभावित देशों से आने वाले यात्रियों की एयरपोर्ट पर स्क्रीनिंग शुरू कर दी थी। कोरोना के मरीज सौ तक पहुंचे, उससे पहले ही भारत ने विदेश से आए हर यात्री के लिए 14 दिन का आइसोलेशन अनिवार्य कर दिया था साथ ही अनेक जगहों पर मॉल, क्लब तथा जिम बंद किए जा चुके थे। जब हमारे यहां कोरोना के सिर्फ 550 केस थे, तभी भारत ने 21 दिन के संपूर्ण लॉकडाउन का एक बड़ा कदम उठा लिया था। वहीं हमने देखा कि कुछ पूंजीवादी देश लॉक डाउन से पहले यह सोच रहे थे कि उनके लिए पूंजी जरुरी है या उनके लोग। प्रधानमंत्री ने बताया कि भारत ने समस्या बढ़ने का इंतजार नहीं किया, बल्कि जैसे ही समस्या दिखी उसे तेजी से फैसले लेकर उसी समय रोकने का प्रयास किया।
आज विचार करने का या खामियां निकालने का समय नहीं है अपितु साथ आने समय है। यह समय सभी प्रकार के धार्मिक, राजनीतिक एवं वैचारिक मतभेदों इत्यादि को भुलाकर साथ आने का है। संकट के इस काल में प्रत्येक भारतवासी को साथ मिलकर कोरोना से इस लड़ाई को लड़ना होगा।
(शोधार्थी, पत्रकारिता विभाग, गुरु घासीदास केन्द्रीय विश्वविद्यालय, बिलासपुर, छत्तीसगढ़)
Comments